Wednesday, May 12, 2010

क्या चमन क्या फासले गुल

क्या चमन क्या फासले गुल, बुझ गयी आँखें तो हर मंजर धुआं हो जायेगा.
रहे हक में मंजिले दारोरसन आने तो दो, जो जुबान रखता है वो भी बेजुबान हो जायेगा.

नए कमरों में अब चीजे पुरानी कौन रखता है. परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है.
हमही गिरती हुई दीवारों को थामें रहे वरना सलीके से दिलवालों की निशानी कौन रखता है.

मेरी तहजीब नंगी हो रही है, ये उड़कर इक दुपट्टा जा रहा है.
ना जाने जुर्म क्या हमसे हुआ, हमें किस्तों में लुटा जा रहा है.

Tuesday, May 11, 2010

मुकमल जहाँ नहीं मिलता

कहते हैं की किसी को मुकमल जहाँ नहीं मिलता. मैं भी कभी किसी चीज से मुकमल नहीं हुआ. दोस्तों की बात करूँ तो अब तक तो कोई ऐसा नहीं जो मेरी तकलीफों से वास्ता रखता हो. जो मेरी किसी बात से मतलब रखता हो. सोशल हूँ पर लोगों के लिए सिर्फ मतलब साधने का जरिया बन कर रह गया हूँ.

Monday, May 10, 2010

अपना बचपन याद आता है

मुझे अब भी कभी कभी अपना बचपन याद आता है. कितने हसीं दिन थे वो. मैं गाँव की पगडंडियों से होता हुआ गाँव के ही एक स्कूल में पढने जाता था. गाँव की जिन्दगी और शहर की जिन्दगी में एक बहुत बड़ा फर्क येही होता है. गाँव से आठ साल की उम्र में ही मैं शहर आ गया.

जाने क्यूँ

अपने कभी प्यार किया है? कैसा होता है ये अहसास? क्यूँ होता है ये प्यार?
किसी की देख के अगर दिल में कुछ हो तो क्या वो प्यार है? क्यूँ कोई देखने में अच्छा लगता है?
मैंने उसे देखा है, उसकी आँखों में कुछ तो ऐसा है जो मेरा दिल उसे देखके मचल जाता है.
जाने क्यूँ  मैं उसके बारे में सोचता रहता हूँ?

Friday, May 7, 2010

जिन्दगी के लांखो रंग हैं.

जिन्दगी के लांखो रंग हैं. हर रंग खुद से जुदा जुदा. हर किसी की जिन्दगी मैं कोई खास होता है या उसकी तलाश होती है. मुझे भी किसी की तलाश है. पर जाने ये तलाश पूरी कब होगी. नज़रों मी तो कई हैं पर इस दिल पर कोई क्यूँ नहीं छा जाता पता नहीं.