Tuesday, May 11, 2010

मुकमल जहाँ नहीं मिलता

कहते हैं की किसी को मुकमल जहाँ नहीं मिलता. मैं भी कभी किसी चीज से मुकमल नहीं हुआ. दोस्तों की बात करूँ तो अब तक तो कोई ऐसा नहीं जो मेरी तकलीफों से वास्ता रखता हो. जो मेरी किसी बात से मतलब रखता हो. सोशल हूँ पर लोगों के लिए सिर्फ मतलब साधने का जरिया बन कर रह गया हूँ.

2 comments:

  1. अमित बाबू,

    आपकी निजानुभव-जनित पीड़ा समझ सकता हूँ-

    "सोशल हूँ पर लोगों के लिए सिर्फ मतलब साधने का जरिया बन कर रह गया हूँ।"

    यह इस स्वार्थांध युग की सच्चाई है...फिर भी मुझे लगता है कि आज भी भले इंसानों की कमी नहीं है!

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